आइके दुनियाँ

आइके दुनियाँ
शुशिला कुमारी महतो शुशिला कुमारी महतो २०८२ भाद्र १८, बुधबार १९:५९
आइके दुनियाँ

देखु ई समाज केकरा इसारा पर जारहल हय,
रील दुनियाँ, रील के दुनियाँ बना रहल हय।
बिपनामे बात लके हमर मन घबरा रहल हय,
लोक सब देखु सपनामे – सपना सजारहल हय।।

जेकरा बटमो बाला मोबाईल चलाबेला हय मुस्किल,
देखु उहो, आजुकाल्हि आइफोन मगा रहल हय।
जेकरा रहै बरसोमे दुइ सेट कपड़ा किनैला मुस्किल,
देखु उहे आइ, नया–नया डिजाइनमे सज रहल हय।।

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पता नइ, ई कोन भाइरस के सुरु कइले हय लोक,
जइय–तइय हुर्दङ मचाके सबके लड़ा रहल हय।
जे आदमी केकरो से भैर मुँह बोलैयो नै सकै,
उहे मोबाईलमे पूरा दुनियाँ करतूत देखा रहल हय।।

पता नइ, ई सब कतसे आके करा रहल हय,
जे समाजमे बैमनी आ विकृति फैला रहल हय।
अभियो समाजके बन्धन नै जाइत पाइतके डर हय,
कयलौं कि सबटा भोजे–भात प बिका रहल हय।।

जे चीजसे डर रहै हमर अहाँक समाजके,
आइ उहे चीज दिन–दहारे हो रहल हय।
जेकरा बुझै छी भलादमी आ काबिल,
आइ उहे समाजके भित्तरसे गरैस रहल हय।।

प्रकाशित मिति: २०८२ भाद्र १८, बुधबार १९:५९
शुशिला कुमारी महतो

शुशिला कुमारी महतो

लेखक

उहाँ मधेशपत्रको लागि कविता लेख्नु हुनुहुन्छ ।


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