बेटीक पीड़ा – कविता

बेटीक पीड़ा – कविता
मधेशपत्र मधेशपत्र २०८२ श्रावण ११, आईतवार १९:२१
बेटीक पीड़ा – कविता

– शुशिला कुमारी महतो

दहेजक डर सऽ
तु हमरा पढ़ई-लिखईक उमेरमे बियाहक बेड़ीमे बाँधी देलहक।
सोचले जे एकटा बोझ कम भेल,
गंगा नहाइत समयो बचल,
मुदा ई नै सोचलहक —
बेटी केना सम्हारत ससुराल कच्चा उमेरमे?

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अखनो नै चुल्हा-चौका सिखल अछि,
अखनो नै रोटी बनबऽ आबैत अछि,
अखनो नै जोर-चितक सम्हार करऽ अबैत अछि।

सीखबाक उमेरमे दऽ देलहक बड़का जिम्मेवारी,
पढ़बाक उमेरमे बना देलहक जिनगी भारी।

जगु, आओर सब केँ जगा —
तखनिए जगत संसार।
दहेजक लेन-देन रोकू,
तखन बनत बेटी महान।

बर केँ काबिल नै खोजू,
दहेज देबाक पैसासँ —
बेटी केँ बनाऊ काबिल,
ओही पैसासँ।

तखन देखबें —
तोहर बेटी कत’ आगाँ बढ़त,
दहेज ल’ नै, दहेज द’ नै —
सब कोनो बेटी केँ मांगत।

तखन देखबें —
बेटीक लेल बर नै खोजए पड़त,
बर स्वयं बेटी केँ खोजैत
तोहर द्वार धरि अबैत।

लेखक शिक्षिका हुनुहुन्छ ।

प्रकाशित मिति: २०८२ श्रावण ११, आईतवार १९:२१
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