रक्षा बन्धन

रक्षा बन्धन
शुशिला कुमारी महतो शुशिला कुमारी महतो २०८२ श्रावण २४, शनिबार १४:३१
रक्षा बन्धन

राखी के धागा में भाई–बहिन के प्यार
जल्दी से आ जा न बहिन, तोरे इंतजार,
सबके बहिन आइलासे, घर भइल जगमग,
तोरा नै देखली त मन भइल बढ़ अलमल।

कहाँ भइलौ कमी से, तू रूईश रहले गे,
कहाँ लेबे भाई से, बाज हमर बहिन गे।
तोरे से राखी बनबाके चलते हम,
लौट आइलियौ छोड़के विदेश गे।

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आजियो के दिन में हमर हाथ लगै हौ सुनाह गे,
कह न गे बहिन, कि भेलै? हमरासे गुनाह गे।
धन–सम्पत्ति से नइ, जानो से करबौ प्रवाह गे,
सोना–चानी नइ त, सारीओ से करबौ बिदाह गे।

तुहीं छै ई भाई के मान, तुहीं सब सम्मान गे,
तोरे से बनल ई भाई के जीवन के अरमान गे।
राखी के धागा में बहिन के हरदम प्यार गे,
जल्दी से आ जा न, इंतजार नइ कर बहिन गे।

तोहर खुशी में हमर प्राण हरदम बैठल हउ,
घटी–कुघटी जे भेल हउ, ओकरा तू जउन बिसइर गे।
तोरा बिना नइ सोहावै हे ई पर्व–त्योहार गे,
तोरा बिना उदास लागे, हम्मर रक्षा बन्धन गे।

प्रकाशित मिति: २०८२ श्रावण २४, शनिबार १४:३१
शुशिला कुमारी महतो

शुशिला कुमारी महतो

लेखक

उहाँ मधेशपत्रको लागि कविता लेख्नु हुनुहुन्छ ।


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